गाँव का पुराना बगीचा
हमारे गाँव के किनारे एक पुराना बगीचा है, जो सदियों से सुनसान पड़ा है। गाँव वाले कहते हैं कि इस बगीचे में एक भूत का साया रहता है। दिन के समय तो यहाँ सब कुछ सामान्य लगता है, लेकिन रात होते ही लोग इस बगीचे के पास से भी गुजरने से डरते हैं। इस बगीचे से जुड़ी कहानियाँ वर्षों से गाँव में प्रचलित हैं।
रघु का संकल्प
रघु, जो गाँव का एक नौजवान लड़का है, इन कहानियों पर विश्वास नहीं करता। उसका मानना है कि लोग बिना वजह ही डरते हैं। एक दिन उसने ठान लिया कि वह इस बगीचे में जाकर सच्चाई का पता लगाएगा। एक रात, जब चाँदनी चारों ओर बिखरी हुई थी, रघु चुपके से अपने घर से निकला और बगीचे की ओर चल पड़ा। जैसे ही वह बगीचे के पास पहुँचा, उसे हल्की-हल्की आवाजें सुनाई देने लगीं, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और आगे बढ़ता गया।
गौरी की आत्मा से मुलाकात
बगीचे में घुसते ही रघु को अजीब-सी ठंडक महसूस हुई। चारों ओर घना अंधेरा था और बस चाँदनी की हल्की रोशनी ही उसे रास्ता दिखा रही थी। बगीचे के बीचोबीच एक पुराना, टूटा-फूटा कुआँ था। गाँव वाले कहते थे कि यही कुआँ भूत के साए का कारण है। रघु ने उस कुएँ के पास जाकर झाँकने की कोशिश की। जैसे ही उसने कुएँ के अंदर झाँका, एक ठंडी हवा का झोंका आया और एक छाया उसके सामने प्रकट हुई। रघु के दिल की धड़कन तेज हो गई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
छाया ने धीरे-धीरे एक आकार लिया और एक बूढ़ी औरत के रूप में बदल गई। रघु ने देखा कि उसकी आँखों में एक अजीब-सी उदासी थी। वह औरत बोली, “डरो मत, बेटा। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी।” रघु ने हिम्मत करके पूछा, “आप कौन हैं और यहाँ क्यों रहती हैं?” वह औरत बोली, “मैं इस गाँव की हूँ। बहुत साल पहले, मेरा नाम गौरी था। मेरे पति इस कुएँ में गिरकर मर गए थे। गाँव वालों ने मुझे दोषी ठहराया और मुझे इस बगीचे में अकेला छोड़ दिया। मेरी आत्मा तब से यहीं भटक रही है, न्याय की प्रतीक्षा में।”
आत्माओं को शांति मिलना
रघु की आँखों में आँसू आ गए। उसने कहा, “मैं आपकी मदद कैसे कर सकता हूँ?” गौरी ने कहा, “मेरे पति की आत्मा भी इस कुएँ में फँसी हुई है। अगर तुम इस कुएँ से उनका कुछ सामान निकाल सको, तो हमारी आत्माओं को शांति मिल सकती है।” रघु ने बिना समय गवाए कुएँ में झाँका और उसे एक पुरानी अंगूठी दिखाई दी। उसने जल्दी से एक रस्सी की मदद से उस अंगूठी को बाहर निकाला और गौरी को दे दी। अंगूठी को देखते ही गौरी की आत्मा मुस्कुराई और धीरे-धीरे हवा में घुलकर गायब हो गई।
अगले दिन, रघु ने गाँव वालों को इस घटना के बारे में बताया। पहले तो किसी ने उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया, लेकिन जब उन्होंने उस कुएँ में देखा कि वहाँ अब कोई अजीब घटनाएँ नहीं हो रही थीं, तो वे रघु की बात मान गए। गाँव वालों ने मिलकर उस कुएँ को ठीक कराया और वहाँ एक छोटी सी मंदिर बना दी, जहाँ लोग आकर गौरी और उसके पति की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। अब वह बगीचा एक शांति का प्रतीक बन गया था और वहाँ कोई भी डर के बिना जा सकता था।
रघु की हिम्मत और गौरी की आत्मा को शांति दिलाने की कहानी गाँव में एक मिसाल बन गई। लोग अब समझ चुके थे कि हर रहस्य के पीछे एक सच्चाई होती है, जिसे जानने के लिए हमें अपने डर का सामना करना पड़ता है। इस घटना के बाद, रघु गाँव का हीरो बन गया और उसकी बहादुरी की कहानियाँ चारों ओर फैल गईं। गाँव वाले अब उस बगीचे को ‘शांति का बगीचा’ कहते थे और वहाँ समय बिताना पसंद करते थे। इस तरह रघु ने अपने गाँव को एक डरावने साए से मुक्त कर दिया और एक नई शुरुआत की।